यह ब्लॉग खोजें

19 जनवरी, 2011

" सूअर का बच्चा" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")

 
गोरा-चिट्टा कितना अच्छा।
लेकिन हूँ सूअर का बच्चा।।

लोग स्वयं को साफ समझते।
लेकिन मुझको गन्दा कहते।।

मेरी बात सुनो इन्सानों।
मत अपने को पावन मानों।।

भरी हुई सबके कोटर में। 
तीन किलो गन्दगी उदर में।।

श्रेष्ठ योनि के हे नादानों।
सुनलो धरती के भगवानों।।

तुम मुझको चट कर जाते हो।
खुद को मानव बतलाते हो।।

भेद-भाव नहीं मुझको आता।
मेरा दुनिया भर से नाता।।

ऊपर वाले की है माया।
मुझे मिली है सुन्दर काया।।

साफ सफाई करता बेहतर।
मैं हूँ दुनियाभर का मेहतर।। 


3 टिप्‍पणियां:

  1. सूअर पर आज ही सुबह सरस पायस पर एक कविता पढ़ी थी . अभी आपकी भी कविता पढ़ी . लगता है , आप और रावेन्द्र रवि की सांठ-गाँठ है . एक ही दिन में ;एक ही स्थान से ;एक ही विषय की पुनरावृत्ति . ...बहुत खूब ... . आप दोनों को बधाई .

    जवाब देंहटाएं
  2. डॉ. नागेश जी,
    डॉ. रूपचंद्र शास्त्री मयंक जी की
    यही तो सबसे विशिष्ट ख़ूबी है कि वे किसी
    एक विषय पर कोई कविता पढ़ते ही
    उस विषय पर अपनी कविता लिख लेते हैं!
    --
    डॉ. मयंक एक विलक्षण आशुकवि हैं!
    इस काम में उन्हें ज़रा-सी भी देर नहीं लगती!
    --
    "सरस पायस" तो प्रारंभ से ही
    उनके लिए प्रेरणा-स्रोत रहा है
    और वे इस तरह से प्रेरणा लेकर
    कविताएँ लिखते रहे हैं!
    --
    आइए,
    "सरस पायस" पर प्रकाशित
    चंद्रमोहन दिनेश जी की
    वह कविता भी पढ़ लेते हैं,
    जिससे प्रेरणा लेकर उन्होंने यह कविता लिखी!
    --
    आओ पास, तुम्हें नहलाऊँ
    --
    मयंक जी ने निम्नांकित शीर्षक से इसे
    अपने ब्लॉग उच्चारण पर भी
    साथ ही साथ प्रकाशित किया है -
    --
    गोरा-चिट्टा कितना अच्छा

    जवाब देंहटाएं
  3. शास्त्री जी !!! सादर अभिनन्दन !!!बहुत सुंदर कविता ...

    जवाब देंहटाएं

केवल संयत और शालीन टिप्पणी ही प्रकाशित की जा सकेंगी! यदि आपकी टिप्पणी प्रकाशित न हो तो निराश न हों। कुछ टिप्पणियाँ स्पैम भी हो जाती है, जिन्हें यथासम्भव प्रकाशित कर दिया जाता है।