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13 अप्रैल, 2011

"खून चूसता है जी भर कर" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")

झूम-झूमकर मच्छर आते।
कानों में गुञ्जार सुनाते।।
नाम ईश का जपते-जपते।
सुबह-शाम को खूब निकलते।।

बैठा एक हमारे सिर पर।
खून चूसता है जी भर कर।।
नहीं यह बिल्कुल भी डरता।
लाल रक्त से टंकी भरता।।

कैसे मीठी निंदिया आये?
मक्खी-मच्छर नहीं सतायें।
मच्छरदानी को अपनाओ।
चैन-अमन से सोते जाओ।।

4 टिप्‍पणियां:

  1. सुंदर मच्छर गाथा| फोटो भी जबर्दस्त बनाया मच्छर को सर पर बैठा कर|

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  2. ये क्या कविवर,मच्छरदानी में होने की बजाय आप स्वयं खून चुसवा रहे हैं!

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  3. बच्चों को मच्छरों और उनसे बचाव के विषय में बाल स्वभाव के अनुकूल कविता। आभार।

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