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24 अगस्त, 2011

"थाली के बैंगन" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')

गोल-गोल हैं, रंग बैंगनी,
बैंगन नाम हमारा है।
सुन्दर-सुन्दर रूप हमारा,
सबको लगता प्यारा है।।

कुछ होते हैं लम्बे-लम्बे,
कुछ होते हैं श्वेत-धवल।
कुछ होते हैं टेढ़े-मेढ़े,
कुछ होते हैं बहुत सरल।

सभी जगह पर थाली के 
बैंगन ही बिकने आते है।
चापलूस लोगों से तो,
सब ही धोखा खा जाते हैं।

इनका भरता बना-बनाकर,
चटकारे ले-लेकर खाना।
किन्तु कभी अपने जीवन में,
खुदगर्ज़ों को मुँह न लगाना।।
(कुछ चित्र गूगल छवियों से साभार)

20 टिप्‍पणियां:

  1. बैगन से भी सीख दी जा सकती है, कोई आपसे सीखे। इस कविता में क्या नहीं है! बैगन का रूप रंग, उपयोग, मुहावरे और अंत में कमाल तो आपने किया है संदेश देकर। अत्यंत प्रभावित करती रचना।

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  2. सीधी सच्ची बात, बच्चों से ज्यादा बड़ों के काम की, .....

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  3. किन्तु कभी अपने जीवन में,
    खुदगर्ज़ों को मुँह न लगाना...
    बच्चों और बड़ों सबके लिए सार्थक सन्देश ...
    आभार!

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  4. यही सही है कि इनका भरता बना लिया जाए।
    हम तो यही कर रहे हैं।
    आपके फ़ोटो ग़ज़ब के हैं आपके ही खींचे गए लगते हैं।

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  5. सुन्दर और सरल संदेश देती कविता...

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  6. सभी जगह पर थाली के
    बैंगन ही बिकने आते है।
    चापलूस लोगों से तो,
    सब ही धोखा खा जाते हैं।
    बहुत ही अच्छी कविता और सन्देश देने वाली
    ..............धन्यवाद् ...

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  7. बहुत अच्छी है ये कविता...थैंक्यू अंकल!!!

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  8. बहुत सुन्दर शास्त्री जी,स्वार्थी लोगों से बच कर रहना जरूरी है,परन्तु लगता है दुनिया में निस्वार्थ लोग बहुत कम हैं.

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  9. बहुत अच्छी लगी यह कविता,साथ में चित्र भी बहुत अच्छे हैं|उपयोगी संदेश देती हुई कविता के लिए धन्यवाद...|

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  10. बालोपयोगी सरलतम शब्दावली उत्कृष्ट कविता.

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  11. किन्तु कभी अपने जीवन में,
    खुदगर्ज़ों को मुँह न लगाना।।

    bilkl sahi kaha hai aapne, aabhaar.

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  12. बहुत ही अच्‍छी प्रस्‍तुति ।

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  13. सुन्दर सीख देती हुई रचना ...

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