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07 सितंबर, 2011

"रंग-बिरंगे छाते" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")

धूप और बारिश से,
जो हमको हैं सदा बचाते।
छाया देने वाले ही तो,
कहलाए जाते हैं छाते।।
आसमान में जब घन छाते,
तब ये हाथों में हैं आते।
रंग-बिरंगे छाते ही तो,
हम बच्चों के मन को भाते।।
 तभी अचानक आसमान से,
मोटी-मोटी बूँदें आई।
प्रांजल ने उतार खूँटी से,
छतरी खोली और लगाई।।

प्राची ने जैसे ही देखा,
भइया छतरी ले आया है।
उसने भी प्यारा सा छाता,
अपने सिर पर फैलाया है।।
कई दिनों में वर्षा आई,
जाग गई मन में उमंग हैं।
भाई-बहन दोनों ही खुश हैं,
दो छातों के अलग रंग हैं।।

13 टिप्‍पणियां:

  1. अति सुंदर. आप की यह कविता मुझे बचपन की याद दिलाती है.

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  2. आदरणीय डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री मयंक जी
    सादर प्रणाम !

    कई दिनों में वर्षा आई,
    जाग गई मन में उमंग हैं।
    भाई-बहन दोनों ही खुश हैं,
    दो छातों के अलग रंग हैं।।

    वाह !
    शास्त्री चाचा हर तरह के काव्य में सिद्धहस्त हैं … बहुत बढ़िया बाल कविता है !

    ♥ हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं !♥
    - राजेन्द्र स्वर्णकार

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  3. प्राची ने जैसे ही देखा,
    भइया छतरी ले आया है।
    उसने भी प्यारा सा छाता,
    अपने सिर पर फैलाया है।।

    वाह!बहुत अच्छी प्रस्तुति...

    जवाब देंहटाएं
  4. बहुत ही प्यारी कविता।
    ---------
    कल 09/09/2011 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
    धन्यवाद!

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  5. बहुत प्यारी-प्यारी सी बढ़िया बाल कविता ....

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  6. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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  7. बहुत सुन्दर है ये बाल कविता, थैंक्यू अंकल! मैंने प्रांजल को प्रांजलि करके पढ़ा, (क्योंकि मेरा नाम प्रांजलि है न!) इसलिए मुझे तो लगा की ये कविता मेरे लिए ही है, क्योंकि मैं भी इसमें शामिल हूँ....

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  8. बहुत सुंदर है आपकी यह बाल कविता....बचपन में तो लुभाते ही हैं रंग बिरंगे छाते मगर मुझे तो आज भी बहुत पसंद है यह रंग बिरंगे छाते ....धन्यवाद

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  9. इन्द्रधनुषी सप्त रंगों से सजी बेहद सुन्दर रचना....सादर !!!

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