मुक्त परीक्षा से होकर, हम अपने घर में आये। हमें देखकर दादा-दादी, फिर आये माँ के दरबार।
अपना शीश नवाया हमने,
माँ की महिमा अपरम्पार।
भूख लगी तो बाबा जी ने,
चाट-पकौड़े खिलवाये।
हमें देखकर दादा-दादी, फूले नहीं समाये।।
देहरादून हमारे पापा,
सरकारी सेवा करते हैं।
इसीलिए हम भी तो,
उनके साथ-साथ रहते हैं।
बहुत दिनों के बाद,
खटीमा के दर्शन कर पाये।
हमें देखकर दादा-दादी, फूले नहीं समाये।। |