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23 अगस्त, 2013

"मोबाइल" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')

मेरी बालकृति "नन्हें सुमन" से
एक बालकविता
"मोबाइल"
mobile 
पापा ने दिलवाया मुझको,
मोबाइल इक प्यारा सा।
मन-भावन रंगों वाला,
यह एक खिलौना न्यारा सा।।

रोज सुबह को मुझे जगाता,
मोबाइल कहलाता है।
दूर-दूर तक बात कराता,
सही समय बतलाता है।।

नम्बर डायल करो किसी का,
पता-ठिकाना बतलाओ।
मुट्ठी में इसको पकड़ो और,
संग कहीं भी ले जाओ।।

इससे नेट चलाओ चाहे,
बात करो दुनिया भर में।
यह सबके मन को भाता है,
लोकलुभावन घर-घर में।।

बटन दबाते ही मोबाइल,
काम टार्च का देता है।
पलक झपकते ही यह सारा,
अंधियारा हर लेता है।।

सेल-फोन इस युग का,
इक छोटा सा है कम्प्यूटर।
गुणा-भाग करने वाला,
बन जाता कैल-कुलेटर।।

3 टिप्‍पणियां:

  1. सच में बचपन में पहले मोबाईल को पाने की ख़ुशी अजीब ही होती है...यह आज की ज़रूरत बनता जा रहा है...मोबाईल की महत्ता को दर्शाती अच्छी कविता...बधाई;-))

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  2. ये सब का भाग्य विधाता है ,


    नन्ना सा सेल हमारा है।

    ये फ़ो टू भी दिखलाता है ,

    गाने भी खूब सुनाता है।

    जवाब देंहटाएं

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