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25 सितंबर, 2013

"हमने झूला झूला" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')

मेरी बालकृति नन्हें सुमन से
 एक बालकविता
"हमने झूला झूला"
parrot
मानसून का मौसम आया,
तन से बहे पसीना!
भरी हुई है उमस हवा में,
जिसने सुख है छीना!!

कुल्फी बहुत सुहाती हमको,
भाती है ठण्डाई!
दूध गरम ना अच्छा लगता,
शीतल सुखद मलाई!!

पंखा झलकर हाथ थके जब,
हमने झूला झूला!
ठण्डी-ठण्डी हवा लगी तब,
मन खुशियों से फूला!! 

2 टिप्‍पणियां:

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