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17 जनवरी, 2014

"बेच रहा मैं भगवानों को" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')

मेरी बालकृति नन्हें सुमन से
 
बालकविता
"बेच रहा मैं भगवानों को"
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सुन्दर-सुन्दर और सजीले!
आकर्षक और रंग-रंगीले!!

शिवशंकर और साँईबाबा!
यहाँ विराजे काशी-काबा!!

कृष्ण-कन्हैया अलबेला है!
कोई गुरू कोई चेला है!!

जग-जननी माँ पार्वती हैं!
धवल वस्त्र में सरस्वती हैं!!

आदि-देव की छटा निराली!
इनकी सूँड बहुत मतवाली!!

जो जी चाहे वो ले जाओ!
सिंहासन पर इन्हें बिठाओ!!

मन में हों यदि नेक भावना!
पूरी होंगी सभी कामना!!

बेच रहा मैं भगवानों को!
खोज रहा हूँ श्रीमानों को!!

ये सब मेरे भाग्य-विधाता!
भक्तों जोड़ो इनसे नाता!!

5 टिप्‍पणियां:

  1. बढ़िया प्रस्तुति-
    बधाई स्वीकारें आदरणीय-

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  2. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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  3. सेवक बिकता हाट मैं, लै लो लै लो मोल ।
    कहे हरि का लेवेंगे, तुहरे असीर बोल ।११५७।

    भावार्थ : -- सेवक हटवार में बिक रहा है, ले लो मोल ले लो । जब हरि ने पूछा कहो क्या लोगे । तो हटबया (विक्रेता ) ने कहा भगवान केवल आपके आशीर्वचन ॥

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