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23 अप्रैल, 2014

"बालकविता-मोबाइल" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')

मेरी बालकृति "नन्हें सुमन" से

बाल कविता
मोबाइल

mobile 
पापा ने दिलवाया मुझको,
सेल-फोन इक प्यारा सा।
मन-भावन रंगों वाला,
यह एक खिलौना न्यारा सा।।

रोज सुबह को मुझे जगाता,
मोबाइल कहलाता है।
दूर-दूर तक बात कराता,
सही समय बतलाता है।।

नम्बर डायल करो किसी का,
पता-ठिकाना बतलाओ।
मुट्ठी में इसको पकड़ो और,
संग कहीं भी ले जाओ।।

इससे नेट चलाओ चाहे,
बात करो दुनिया भर में।
यह सबके मन को भाता है,
लोकलुभावन घर-घर में।।

बटन दबाते ही मोबाइल,
काम टार्च का देता है।
पलक झपकते ही यह सारा,
अंधियारा हर लेता है।।

सेल-फोन इस युग का,
इक छोटा सा है कम्प्यूटर।
गुणा-भाग करने वाला,
बन जाता कैल-कुलेटर।।

4 टिप्‍पणियां:

  1. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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  2. बहुत ही सुंदर कविता है... नन्हे सुमनों के लिए बहुत ही मन भावन...
    सफलता के मूल मन्त्र l

    जवाब देंहटाएं
  3. सेल-फोन इस युग का,
    इक छोटा सा है कम्प्यूटर।
    गुणा-भाग करने वाला,
    बन जाता कैल-कुलेटर।।

    बढ़िया जानकारी पिरोई है बालकों के अनुरूप।

    जवाब देंहटाएं

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