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15 फ़रवरी, 2017

बालकविता "तीखी-मिर्च कभी मत खाओ" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)

तीखी-तीखी और चर्परी।
हरी मिर्च थाली में पसरी।।

तोते इसे प्यार से खाते।
मिर्च देखकर खुश हो जाते।।

सब्ज़ी का यह स्वाद बढ़ाती।
किन्तु पेट में जलन मचाती।।

जो ज्यादा मिर्ची खाते हैं।
सुबह-सुबह वो पछताते हैं।।

दूध-दही बल देने वाले।
रोग लगाते, मिर्च-मसाले।।

शाक-दाल को घर में लाना।
थोड़ी मिर्ची डाल पकाना।।

तीखी-मिर्च कभी मत खाओ। 
सदा सुखी जीवन अपनाओ।।

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