यह है अपना चिंकू प्यारा। पूरे घर का राजदुलारा।। मन का अच्छा तन का काला। घर भर का सच्चा रखवाला।। हरदम रहता है चौकन्ना। बड़े प्यार से खाता गन्ना।। खुश हो करके नित्य नहाता। अंडा-मांस नहीं ये खाता।। लगता है भोला-भण्डारी। पर दुश्मन चोरों का भारी।। कभी न करता लापरवाही। बिन वेतन का सजग सिपाही।। |
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29 मार्च, 2022
बालकविता "बिन वेतन का सजग सिपाही" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
20 मार्च, 2022
विश्व गौरैया दिवस "प्यारी गौरैया" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)
आज विश्व गौरय्या दिवस है! खेतों में विष भरा हुआ है, ज़हरीले हैं ताल-तलय्या। दाना-दुनका खाने वाली, कैसे बचे यहाँ गौरय्या? -- अन्न उगाने के लालच में, ज़हर भरी हम खाद लगाते, खाकर जहरीले भोजन को, रोगों को हम पास बुलाते, घटती जाती हैं दुनिया में, अपनी ये प्यारी गौरय्या। दाना-दुनका खाने वाली, कैसे बचे यहाँ गौरय्या? -- चिड़िया का तो छोटा तन है, छोटे तन में छोटा मन है, विष को नहीं पचा पाती है, इसीलिए तो मर जाती है, सुबह जगाने वाली जग को, अपनी ये प्यारी गौरय्या।। दाना-दुनका खाने वाली, कैसे बचे यहाँ गौरय्या? -- गिद्धों के अस्तित्व लुप्त हैं, चिड़ियाएँ भी अब विलुप्त हैं, खुशियों में मातम पसरा है, अपनी बंजर हुई धरा है, नहीं दिखाई देती हमको, अपनी ये प्यारी गौरय्या।। दाना-दुनका खाने वाली, कैसे बचे यहाँ गौरय्या? -- |
01 अप्रैल, 2020
बालगीत "पूरी दुनिया में कोरोना" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
कभी न करना जादू-टोना।
अपने पैर पसार चुका है,
पूरी दुनिया में कोरोना।।
बाहर नहीं निकलना घर से,
घर में पूरा समय बिताओ।
हर घंटे हाथों को धोओ,
साफ-सफाई को अपनाओ।
अपनी पुस्तक को दोहराओ,
यह अनमोल समय मत खोना।
अपने पैर पसार चुका है,
पूरी दुनिया में कोरोना।।
शीतल पेय कभी मत पीना,
आइसक्रीम अभी मत खाना।
ताजा-ताजा भोजन खाओ,
नियम सुरक्षा के अपनाना।
दिनचर्या को करो नियम से,
जल्दी उठना, जल्दी सोना।
अपने पैर पसार चुका है,
पूरी दुनिया में कोरोना।।
अच्छी सीख बड़ों की मानो,
बे-मतलब की जिद मत करना।
सच्ची बातों को कहने में,
कभी किसी से तुम मत डरना।
सुमनों से मित्रता निभाना,
मन के मनके सदा पिरोना।
अपने पैर पसार चुका है,
पूरी दुनिया में कोरोना।।
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27 अक्तूबर, 2018
बालकविता "सब बच्चों का प्यारा मामा" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
सारे जग से न्यारा मामा।
सब बच्चों का प्यारा मामा।।
नभ में कैसा दमक रहा है।
चन्दा कितना चमक रहा है।।
कभी बड़ा छोटा हो जाता।
और कभी मोटा हो जाता।।
करवाचौथ पर्व जब आता।
चन्दा का महत्व बढ़ जाता।।
महिलायें छत पर जा करके।
आसमान तकतीं जी भरके।।
यह सुहाग का शुभ दाता है।
इसीलिए पूजा जाता है।।
जब नभ में बादल छा जाता।
तब ‘मयंक’ का पता न पाता।।
लुका-छिपी का खेल दिखाता।
छिपता कभी प्रकट हो जाता।।
धवल चाँदनी लेकर आता।
आँखों को शीतल कर जाता।।
यह नभ से अमृत टपकाता।
सबको इसका ‘रूप’ सुहाता।।
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