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21 फ़रवरी, 2010

‘‘तितली रानी’’ (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री मयंक)


मन को बहुत लुभाने वाली,
तितली रानी कितनी सुन्दर।
भरा हुआ इसके पंखों में,
रंगों का है एक समन्दर।।

उपवन में मंडराती रहती,
फूलों का रस पी जाती है।
अपना मोहक रूप दिखाने,
यह मेरे घर भी आती है।।

भोली-भाली और सलोनी,
यह जब लगती है सुस्ताने।
इसे देख कर एक छिपकली,
आ जाती है इसको खाने।।

आहट पाते ही यह उड़ कर,
बैठ गयी चौखट के ऊपर।
मेरा मन भी ललचाया है,
मैं भी देखूँ इसको छूकर।।

इसके रंग-बिरंगे कपड़े,
होली की हैं याद दिलाते।
सजी धजी दुल्हन को पाकर,
बच्चे फूले नही समाते।।

(चित्र गूगल सर्च से साभार)

11 टिप्‍पणियां:

  1. उपवन में मंडराती रहती,
    फूलों का रस पी जाती है।
    अपना मोहक रूप दिखाने,
    यह मेरे घर भी आती है।।
    बहुत ही सुन्दर और प्यारी कविता बिल्कुल रंग बिरंगी तितली की तरह! चित्र भी बहुत ख़ूबसूरत है!

    जवाब देंहटाएं
  2. इसके रंग-बिरंगे कपड़े,
    होली की हैं याद दिलाते।
    सजी धजी दुल्हन को पाकर,
    बच्चे फूले नही समाते।।
    सुन्दर रचना होली के साथ सम्पर्क बनाये हुए

    जवाब देंहटाएं
  3. इसके रंग-बिरंगे कपड़े,
    होली की हैं याद दिलाते।
    सजी धजी दुल्हन को पाकर,
    बच्चे फूले नही समाते।।nice

    जवाब देंहटाएं
  4. उपवन में मंडराती रहती,
    फूलों का रस पी जाती है।
    अपना मोहक रूप दिखाने,
    यह मेरे घर भी आती है।।
    Sundar rachana..!!
    Saadar

    जवाब देंहटाएं
  5. आहट पाते ही यह उड़ कर,
    बैठ गयी चौखट के ऊपर।
    मेरा मन भी ललचाया है,
    मैं भी देखूँ इसको छूकर।। bahut sundar ......

    जवाब देंहटाएं

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