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22 फ़रवरी, 2010

‘‘मेरी गैया’’ (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री “मयंक”)



मेरी गैया बड़ी निराली,
 सीधी-सादी, भोली-भाली।

सुबह हुई काली रम्भाई,
मेरा दूध निकालो भाई।

हरी घास खाने को लाना,
उसमें भूसा नही मिलाना।

उसका बछड़ा बड़ा सलोना,
वह प्यारा सा एक खिलौना।

मैं जब गाय दूहने जाता,
वह अम्मा कहकर चिल्लाता।

सारा दूध नही दुह लेना,
मुझको भी कुछ पीने देना।

थोड़ा ही ले जाना भैया,
सीधी-सादी मेरी मैया।

(चित्र गूगल से साभार)

8 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत खूब ! बछड़े का दर्द बयां कर दिया !

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  2. बहुत ही खूबसूरती से व्‍यक्‍त हर गैया बछड़े की बात ।

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  3. baalsulabh baaten kitni sahajta se dil ko jhanjhorti hain ...... yah blog sarvochch hai

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  4. मन को मोह लेने वाली कविता....बहुत सुन्दर

    जवाब देंहटाएं
  5. और बछिया?
    अच्छा, उसे अगले ब्यात में देखेंगे.

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  6. बछड़े की बात को आपने बखूबी शब्दों में पिरोया है! बहुत ही सुन्दर रचना!

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  7. अरे वाह ! बहुत सुन्दर रचना ..आभार !!

    जवाब देंहटाएं

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