यह ब्लॉग खोजें

24 फ़रवरी, 2010

“संगीता स्वरूप का बालगीतः रेल” (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री “मयंक”

छुक-छुक करती आई रेल!


छुक-छुक करती आई रेल!
आओ मिलकर खेलें खेल!!

लालू-ममता जल्दी आओ!
आकर के डिब्बा बन जाओ!!
खूब चलेगी अपनी रेल!
आओ मिलकर खेलें खेल!!

गुड्डी आई पिंकी आई!
लाल हरी झण्डी ले आई!!
लगी रेंगने अपनी रेल!
आओ मिलकर खेलें खेल!!

इंजन चलता आगे-आगे!
पीछे-पीछे डिब्बे भागे!!
स्टेशन पर रुकती रेल!
आओ मिलकर खेलें खेल!!

टिकट कटाओ करो सवारी!
बिना टिकट जुर्माना भारी!!
जाना पड़ सकता है जेल!
आओ मिलकर खेलें खेल!!
sangitaswaroop
(श्रीमती संगीता स्वरूप)

(चित्र गूगल सर्च से साभार)

8 टिप्‍पणियां:

  1. शास्त्री जी को धन्यवाद देना बहुत कम है पर ये भी ना दूँ तो मेरी तरफ से ठीक नहीं होगा...शास्त्री जी ने इस रचना के भावों में अपने शब्दों से बहुत सुन्दर बना दिया है...इस रचना को मात्र मेरी रचना ना समझियेगा...शास्त्रीजी की अनुकम्पा है कि उन्होंने मेरा हौसला बढ़ाया है....शुक्रिया

    जवाब देंहटाएं
  2. wowwww.....so cute...
    Sangeeta ji aap to balgeet ki ek pustak chhpwa len bahut kaam aayengi bachhcon ke..

    जवाब देंहटाएं
  3. बड़ी प्यारी सी कविता है...एकदम बचपन याद दिला गयी..

    जवाब देंहटाएं
  4. waaahh baccho ki kavitaao me bhi aapki pratibha ka parcham lehra raha hai..bahut acchhi kavita...aapko yu likhta dekh kar dil karta he me bhi jara apni kalam ki dhaar tez karu aur kuchh likhu.

    जवाब देंहटाएं

केवल संयत और शालीन टिप्पणी ही प्रकाशित की जा सकेंगी! यदि आपकी टिप्पणी प्रकाशित न हो तो निराश न हों। कुछ टिप्पणियाँ स्पैम भी हो जाती है, जिन्हें यथासम्भव प्रकाशित कर दिया जाता है।