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27 जून, 2011

"टर्र-टर्र चिल्लाने वाला" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")

टर्र-टर्र चिल्लाने वाला!
मेंढक लाला बहुत निराला!!
कभी कुमुद के नीचे छिपता,
और कभी ऊपर आ जाता,
जल-थल दोनों में ही रहता,
तभी उभयचर है कहलाता,
पल-पल रंग बदलने वाला!
मेंढक लाला बहुत निराला!!
लगता है यह बहुत भयानक,
किन्तु बहुत है सीधा-सादा,
अगर जरा भी आहट होती,
झट से पानी में छिप जाता,
उभरी-उभरी आँखों वाला!
मेंढक लाला बहुत निराला!!
मुण्डी बाहर करके अपनी,
इधर-उधर को झाँक रहा है,
कीट-पतंगो को खाने को,
देखो कैसा ताँक रहा है,
उछल-उछल कर चलने वाला!
मेंढक लाला बहुत निराला!!
(छायांकनःडॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")

9 टिप्‍पणियां:

  1. सुन्दर रचना आजकल इनकी आवाज हर तरफ सुनाई देती है।

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  2. बाल गीत लिखने मे आपका जवाब नही

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  3. हमेशा की तरह बहुत सुन्दर बाल गीत्।

    जवाब देंहटाएं
  4. बहुत सुन्दर बालगीत...आभार....

    जवाब देंहटाएं

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