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23 अक्तूबर, 2011

"इससे साफ नज़र आता है" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")


जो सबके मन को भाता है।
वो ही चश्मा कहलाता है।।
 
आयु जब है बढ़ती जाती।
जोत आँख की घटती जाती।।
 
जब हो पढ़ने में कठिनाई।
ऐनक होती है सुखदाई।।
 
इससे साफ नज़र आता है।
लिखना-पढ़ना हो जाता है।।
 
जब सूरज है ताप दिखाता।
चश्मा बहुत याद तब आता।।
 
तेज धूप से यह बचाता।
आँखों को ठण्डक पहुँचाता।।

14 टिप्‍पणियां:

  1. चश्मा का गुणगान अच्छा लगा...सभी बच्चों को दिवाली की शुभकामनाएँ, बस पटाख़े सावधानी से जलाएँ|

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  2. vaah chashme ke gun bahut sundar tareeke se batayen hain.bahut pyari rachna.

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  3. बाबा का चश्मा गजब, करता दूर विकार |
    दूर-दृष्टि का दोष या, निकट दोष की मार ||

    पोता-पोती ही सही, हैं आँखों के नूर |
    पास सूझता एक से, दूजे से कुछ दूर ||

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  4. बहुत सुन्दर.. .दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएं..

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  5. चश्मे के बगैर अपनी दुनिया ही चपटी लगती है :)

    बच्चों के लिए बहुत ही अच्छी कविता रची है सर!

    सादर

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  6. सुंदर बाल गीत ..
    .. सपरिवार आपको दीपावली की शुभकामनाएं !!

    जवाब देंहटाएं
  7. सुंदर बाल गीत ..
    .. सपरिवार आपको दीपावली की शुभकामनाएं !!

    जवाब देंहटाएं
  8. चश्मे की महिमा अच्छी लगी ...सादर

    जवाब देंहटाएं
  9. आदरणीय शास्त्री जी अभिवादन ..सुन्दर ज्ञान वर्धक रचना ..आइये आँखों को धूल और धुप से मुक्त रखें
    भ्रमर ५
    बाल झरोखा सत्यम की दुनिया

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  10. बहुत ही बढि़या

    कल 09/11/2011 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है।

    धन्यवाद!

    जवाब देंहटाएं

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