पापा मेले में ले जाओ।गर्म जलेबी हमें खिलाओ।। गोल-गोल हैं प्यारी-प्यारी। शानदार हैं सबसे न्यारी।।
नारंगी रंगों वाली हैं। लगती कानों की बाली हैं।। कितनी अच्छी, कितनी सुन्दर? मीठा रस है इनके अन्दर।।
मेले में थोडी ही खाना। बाकी अपने घर ले जाना।। गर्म दूध में इन्हें डुबाना। ठण्डी हो जाने पर खाना।। |
meethee meethee jalebee dekh kar man lalcha gaya..methee methee jalebi..meethi methee rachna..sadar badhayee aaur amantran ke sath
जवाब देंहटाएंवाह !! गरमागरम जलेबी... बढ़िया रस-भरी रचना.
जवाब देंहटाएंप्यारी सी , मीठी मीठी सी जलेबी की कविता.....
जवाब देंहटाएंरसदार जलेबी खाओ भैया |
जवाब देंहटाएंअच्छे दोस्त बनाओ भैया |
सरस बने जीवन हम सबका-
मधुर-स्वरों में गाओ भैया ||
पानी आ गया मुँह में
जवाब देंहटाएंवैसे नल में कम आ रहा है
पानी खोलने वाला चौकीदार
जलेबियाँ क्यों नहीं खा रहा है ।
वाह ...बहुत खूब।
जवाब देंहटाएंवाह... मजा आ गया...
जवाब देंहटाएंसादर.
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