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09 सितंबर, 2010

“घोड़ा” (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री “मयंक”)

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मैं घोड़ा हूँ जानदार हूँ
स्वामीभक्त हूँ शानदार हूँ


खड़े-खड़े ही मैं सोता हूँ
कभी निराश नही होता हूँ 


ताकतवाला हिम्मतवाला
रणभूमि का हूँ मतवाला


युद्धक्षेत्र या कर्मक्षेत्र हो
अश्वमेध का धर्मक्षेत्र हो


इंजन हूँ मैं बिना भाप का
चेतक हूँ राणा प्रताप का
chetak

6 टिप्‍पणियां:

  1. बाल सुलभ रचना है, शब्द साधारण , अपितु मेहनत अत्यधिक की गई है.
    - विजय तिवारी

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  2. घोड़ा मेरा पसंदीदा जानवर है , कभी कभी पापा भी धोदा बनते है

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  3. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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  4. कित्ती प्यारी रचना ...बधाई.

    _____________________
    'पाखी की दुनिया' - बच्चों के ब्लॉगस की चर्चा 'हिंदुस्तान' अख़बार में भी

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