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18 मई, 2011

"लू-गरमी का हुआ सफाया" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")


 उमड़-घुमड़ कर बादल आये।
घटाटोप अँधियारा लाये।।
काँव-काँव कौआ चिल्लाया।
लू-गरमी का हुआ सफाया।।
 मोटी जल की बूँदें आईं।
आँधी-ओले संग में लाईं।।
धरती का सन्ताप मिटाया।
बिजली कड़की पानी आया।।

लगता है हमको अब ऐसा।
मई बना चौमासा जैसा।।
पेड़ों पर लीची हैं झूली।
बगिया में अमिया भी फूली।।
आम और लीची घर लाओ।
जमकर खाओ, मौज मनाओ।।

11 टिप्‍पणियां:

  1. वाह शास्त्री जी, बालमन को एक गीत सुना दिया, मैंने अपने भतीजे को अभी-अभी दिया याद करने को जिससे वो कल स्कूल प्रयेर में गा सके , धन्यवाद एवं नमन .

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  2. बच्चों को भरी बाल्टी आम खाते देखकर अपनी ननिहाल याद आ गई। जहां बाग़ होते हैं ये मंज़र वहीं नसीब होता है। रचना भी अच्छी है और फ़ोटो भी अच्छे हैं।

    http://ahsaskiparten.blogspot.com/2011/05/life-partner.html

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  3. बच्चों को भरी बाल्टी आम खाते देखकर अपनी ननिहाल याद आ गई। जहां बाग़ होते हैं ये मंज़र वहीं नसीब होता है। रचना भी अच्छी है और फ़ोटो भी अच्छे हैं।

    http://ahsaskiparten.blogspot.com/2011/05/life-partner.html

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  4. वाह शास्त्री जी बाल्टी में आम खाये हुए तो जमाना बीत गया अब तो प्लेट में काम चला लेतें है ...

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  5. अच्छा स्वागत है मानसून का
    प्यारा बालगीत

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  6. यहाँ तो अभी बहुत गर्मी है .... आम और लीची ललचा रहे हैं ...बहुत सुन्दर बालगीत

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  7. बहुत सुन्दर चित्रण किया है।

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  8. मासूम भावों की सुन्दर अभिव्यक्ति

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  9. रेगिस्तान में बैठे बैठे आपके चित्रों और उन पर लिखी सुन्दर पंक्तियों को देख पढ़ कर लगा जैसे यहाँ भी लू गरमी का सफ़ाया हो गया हो..आभार

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  10. बहुत सुन्दर बालगीत|धन्यवाद|

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