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04 जुलाई, 2011

"मीठे होते आम डाल के" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")

आम पेड़ पर लटक रहे हैं।
पक जाने पर टपक रहे हैं।।
हरे वही हैं जो कच्चे हैं।
जो पीले हैं वो पक्के हैं।।
 इनमें था जो सबसे तगड़ा।
उसे हाथ में मैंने पकड़ा।। 
अपनी बगिया गदराई है
आमों की बहार आई है। 
मीठे होते आम डाल के।
बासी होते आम पाल के।।
प्राची खुश होकर के बोली।
बाबा जी अब भर लो झोली।।
चूस रहे खुश होकर बच्चे।
आम डाल के लगते अच्छे।।

5 टिप्‍पणियां:

  1. मुह में पानी भर आया आम के सुन्दर चित्र देख कर और मन गाने को हुआ कविता पढ़कर , बधाई

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  2. बड़ी प्यारी कविता ..... सभी फोटो भी बहुत अच्छे हैं.... प्राची और प्रांजल भैया भी खूब मजे से आम खा रहे हैं

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  3. aapke is blog pe aakar bahut shanti milti hai..baccho ke liye to bahut badhiya kavitayein hai..jo bachpan se pyar karte hai ..jinhe nischalta bhati hai..wo nanhe suman se jarur judenge...punh hardik badhiyi

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  4. बहुत सुन्दर चित्रमय प्रस्तुति।

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