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28 जुलाई, 2011

"भइया मुझे झुलाएगा" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")


अब हरियाली तीज आ रही,
मम्मी मैं झूलूँगी झूला।
देख फुहारों को बारिश की,
मेरा मन खुशियों से फूला।।

कई पुरानी भद्दी साड़ी,
बहुत आपके पास पड़ी हैं।
इतने दिन से इन पर ही तो,
मम्मी मेरी नजर गड़ी हैं।।

इन्हें ऐंठकर रस्सी बुन दो,
मेरा झूला बन जाएगा।
मैं बैठूँगी बहुत शान से,
भइया मुझे झुलाएगा।।

15 टिप्‍पणियां:

  1. jhoola banane ka kitna achcha idea.bahut pyari photo bahut pyaara geet.

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  2. बाल मन को बच्चा बनकर खूब समझा है आपने शास्त्री जी बधाई

    जवाब देंहटाएं
  3. बहुत प्यारा बाल गीत
    आपको मेरी हार्दिक शुभकामनायें
    आप का बलाँग मूझे पढ कर अच्छा लगा , मैं भी एक बलाँग खोली हू
    लिकं हैhttp://sarapyar.blogspot.com/
    अगर आपको love everbody का यह प्रयास पसंद आया हो, तो कृपया फॉलोअर बन कर हमारा उत्साह अवश्य बढ़ाएँ।

    जवाब देंहटाएं
  4. अंकल आपकी कवितायें पढ़कर ऐसा लगता है मानो आप अन्तर्यामी हैं... हम बच्चों के मन की बात आप कितनी अच्छी तरह समझ लेते हैं न ...थैंक्यू!!!

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  5. आपको हरियाली अमावस्या की ढेर सारी बधाइयाँ एवं शुभकामनाएं .

    जवाब देंहटाएं
  6. इन्हें ऐंठकर रस्सी बुन दो,
    मेरा झूला बन जाएगा।
    मैं बैठूँगी बहुत शान से,
    भइया मुझे झुलाएगा।।
    antim panktiyon ne pata nahi kyun bhavuk kar diya .bahut sunder bal geet
    saader
    rachana

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  7. पढ़कर गीतमय हुए, मन के सुए, अनछुए,

    जवाब देंहटाएं
  8. aapka blog mujhe bahut pyara laga,

    aur aapke andar chupa bacha bhi,

    jo bahut hi masoom hai,

    thanks.shastriji.

    जवाब देंहटाएं
  9. इन्हें ऐंठकर रस्सी बुन दो,
    मेरा झूला बन जाएगा।
    मैं बैठूँगी बहुत शान से,
    भइया मुझे झुलाएगा।।

    इन पंक्तियों को पढ़कर बचपन की बहुत सारी बातें याद आ गईं|इतनी अच्छी रचना के लिए धन्यवाद|
    सादर
    ऋता

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