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24 जनवरी, 2017

बालकविता "क.ख.ग. लिखवाती हैं" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)

रंग-बिरंगी पेंसिलें तो, 
हमको खूब लुभाती हैं। 
ये ही हमसे ए.बी.सी.डी., 
क.ख.ग. लिखवाती हैं।। 

रेखा-चित्र बनाना, 
इनके बिना असम्भव होता है।
कला बनाना भी तो, 
केवल इनसे सम्भव होता है।। 

गल्ती हो जाये तो,
लेकर रबड़ तुरन्त मिटा डालो।
गुणा-भाग करना चाहो तो,
बस्ते में से इसे निकालो।। 

छोटी हो या बड़ी क्लास,
ये काम सभी में आती है। 
इसे छीलते रहो कटर से, 
यह चलती ही जाती है।।
तख्ती,कलम,स्लेट का, 
तो इसने कर दिया सफाया है।
बदल गया है समय पुराना,
नया जमाना आया है।। 

2 टिप्‍पणियां:

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