| मेरी बालकृति नन्हें सुमन से  एक बालकविता "काला कागा" लगता बिल्कुल भोला-भाला।। काँव-काँव करके चिल्लाता।। पहुँचा बादल के आँगन में।। नाप रहा नभ की ऊँचाई।। 
चतुर बहुत है काला कागा। 
किन्तु नही बन पाया राजा।। 
पितृ-जनों का इससे नाता। 
यह दुनिया को पाठ पढ़ाता।। धोखा कभी नहीं वो पाता। | 
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02 दिसंबर, 2013
"काला कागा" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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बढ़िया प्रस्तुति-
जवाब देंहटाएंआभार गुरुवर
sundar ...saral ...mohak kavitaa
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