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06 मई, 2010

‘‘उल्लू’’ (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)


उल्लू का रंग-रूप निराला।
लगता कितना भोला-भाला।।

अन्धकार इसके मन भाता।
सूरज इसको नही सुहाता।।

यह लक्ष्मी जी का वाहक है।
धन-दौलत का संग्राहक है।।

इसकी पूजा जो है करता।
ये उसकी मति को है हरता।।

धन का रोग लगा देता यह।
सुख की नींद भगा देता यह।।

सबको इसके बोल अखरते।
बड़े-बड़े इससे हैं डरते।।

विद्या का वैरी कहलाता।
ये बुद्धू का है जामाता।।

पढ़-लिख कर ज्ञानी बन जाना।
कभी न उल्लू तुम कहलाना।।

(चित्र गूगल सर्च से साभार)

10 टिप्‍पणियां:

  1. पढ़-लिख कर ज्ञानी बन जाना।
    कभी न उल्लू तुम कहलाना।।
    उल्लू प्रशस्ति अच्छी लगी, सन्देश बहुत सुन्दर

    जवाब देंहटाएं
  2. बहुत खूब ....सन्देश देती रचना...और उल्लू की सारी विशेषता भी बता दी हैं....अच्छी बाल कविता

    जवाब देंहटाएं
  3. बहुत खूब ....सन्देश देती रचना.

    जवाब देंहटाएं
  4. सुंदर गीत...शास्त्री जी धन्यवाद

    जवाब देंहटाएं
  5. आकर्षक होने के कारण
    इस पोस्ट को चर्चा मंच पर

    "आज ख़ुशी का दिन फिर आया"

    के रूप में सजाया गया है!

    जवाब देंहटाएं
  6. पढ़-लिख कर ज्ञानी बन जाना।
    कभी न उल्लू तुम कहलाना।।

    प्रेरक पंक्तियां...

    साधुवाद 🙏

    जवाब देंहटाएं
  7. उल्लू दिवस पर बहुत ही शानदार रचना के साथ प्रस्तुत की शास्त्री जी

    जवाब देंहटाएं

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