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26 मई, 2010

“आम रसीले मन को भाये” (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री “मयंक”)

सरदी भागी, गरमी आई!
पेड़ों पर हरियाली छाई!! 
वासन्ती मौसम गदराया!
वृक्ष आम का है बौराया!!
0 बागों में कोयलिया बोली!
कानों में मिश्री सी घोली!!
सूरज पर चढ़ गई जवानी!
अच्छा लगता शीतल पानी!!
IMG_1205लू के गरम थपेड़े खाकर!
आम झूलते हैं पेड़ों पर!!
Playing in the Rainमानसून की बदली छाई!
छम-छम जल की बूँदें आई!!
आम रसीले मन को भाये!
हमने बड़े मजे से खाये!!

11 टिप्‍पणियां:

  1. bahut sundar chitron ke sath

    aam khane ka man ho gaya

    http://sanjaykuamr.blogspot.com/

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  2. बहुत सुन्दर , आम देख कर मुह में पानी आ गया

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  3. वाह...इतने सारे आम?????/ कविता बहुत रसीली लगी...

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  4. paanee me nahaate hue baalako se yaad aayaa
    hamne bhee kabhee aisee mastee khoob leenee hai

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  5. इतने सुन्दर तस्वीरें और ढेर सारे आम देखकर तो रहा नहीं जा रहा है! गर्मी के मौसम में आम खाने का मज़ा ही कुछ और है!

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  6. क्यों बालक के मन को ललचा रहे हैं सर.. यहाँ कहाँ मिलेंगे रसीले दशहरी आम.. :(

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  7. kavita or photo dono asi tarah sunder man bhavn tarike se prastut kiya

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