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29 दिसंबर, 2010
"मिक्की माउस" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")
मिक्की माउस कितना अच्छा।
लगता है चूहे का बच्चा।।
कितना हँसमुख और सलोना।
यह लगता है एक खिलौना।।
इसकी सूरत सबसे न्यारी।
लीची जैसी
आँखें
प्यारी।।
तन का काला, मन का गोरा।
मुझको भाता है यह छोरा।।
बालचित्रकार-प्राञ्जल
24 दिसंबर, 2010
"यीशू को, हम प्रणाम करें" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")
मानवता के लिए
सलीबों को अपनाया।
लोहे की कीलों से
अपना तन जिसने बिंधवाया।
आओ उस यीशू को,
हम प्रणाम करें!
इस बलिदानी का,
आओ गुणगान करें!!
सेवा का पावन पथ,
जिसने दिखलाया।
जातिवाद के भेद-भाव से,
जिसने मुक्त कराया।
आओ उस यीशू को,
हम प्रणाम करें!
इस बलिदानी का,
आओ गुणगान करें!!
घूम-घूम कर विद्यामन्दिर
और
चिकित्सालय खुलवाया।
भूले-भटके लोगों को
जिसने था गले लगाया।
आओ उस यीशू को,
हम प्रणाम करें!
इस बलिदानी का,
आओ गुणगान करें!!
19 दिसंबर, 2010
"काँटों में भी मुस्काते हैं" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")
काँटों में भी मुस्काते हैं।
सबके मन को बहलाते हैं।।
नागफनी की शैया पर भी,
ये हँसते-खिलते जाते हैं।
सबके मन को बहलाते हैं।।
सुन्दर सुन्दर गुल गुलाब के,
सारा उपवन महकाते हैं।
सबके मन को बहलाते हैं।।
नीम्बू की कण्टक शाखा पर,
सुरभित होकर बलखाते हैं।
सबके मन को बहलाते हैं।।
काँटों में भी मुस्काते हैं।
सबके मन को बहलाते हैं।।
15 दिसंबर, 2010
"कच्चे घर अच्छे रहते हैं" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")
सुन्दर-सुन्दर सबसे न्यारा।
प्राची का घर सबसे प्यारा।।
खुला-खुला सा नील गगन है।
हरा-भरा फैला आँगन है।।
पेड़ों की छाया सुखदायी।
सूरज ने किरणें चमकाई।।
कल-कल का है नाद सुनाती।
निर्मल नदिया बहती जाती।।
तन-मन खुशियों से भर जाता।
यहाँ प्रदूषण नहीं सताता।।
लोग पुराने यह कहते हैं।
कच्चे घर
अच्छे
रहते हैं।।
10 दिसंबर, 2010
“लड्डू हैं ये प्यारे-प्यारे!” (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री “मयंक”)
लड्डू सबके मन को भाते!
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लड्डू हैं ये प्यारे-प्यारे,
नारंगी-से कितने सारे!
बच्चे इनको
जमकर खाते,
लड्डू सबके मन को भाते!
प्रांजल का भी मन ललचाया,
लेकिन उसने एक उठाया!
अब प्राची ने मन में ठाना,
उसको
हैं
दो लड्डू खाना!
तुम भी खाओ, हम भी खाएँ,
लड्डू खाकर मौज़ मनाएँ!
06 दिसंबर, 2010
"कुकड़ूकूँ" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")
रोज सवेरे मैं उठ जाता।
कुकड़ूकूँ की बाँग लगाता।।
कहता भोर हुई उठ जाओ।
सोने में मत समय गँवाओ।।
आलस छोड़ो, बिस्तर त्यागो।
मैं भी जागा, तुम भी जागो।।
पहले दिनचर्या निपटाओ।
फिर पढ़ने में ध्यान लगाओ।।
अगर सफलता को है पाना।
सेवा-भाव सदा अपनाना।।
मुर्गा हूँ मैं सिर्फ नाम का।
सेवक हूँ मैं बहुत काम का।।
02 दिसंबर, 2010
"मम्मी देखो मेरी रेल" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")
इंजन-डिब्बों का है मेल।
आओ आज बनाएँ रेल।।
इंजन चलता आगे-आगे,
पीछे-पीछे डिब्बे भागे,
सबको अच्छी लगती रेल।
आओ आज बनाएँ रेल।।
मैट्रो ट्रेन बनाई मैंने,
इसको बहुत सजाई मैंने,
मम्मी देखो मेरी रेल।
आओ आज बनाएँ रेल।।
कल विद्यालय में जाऊँगा,
दीदी जी को दिखलाऊँगा,
दो पटरी पर चलती रेल।
आओ आज बनाएँ रेल।।
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